Hindi Stories With Morals
चालाक लोमड़ी और मुर्गा
एक छोटे से गांव में रहने वाले मुर्गे को अपनी आवाज पर बड़ा नाज़ था । एक दिन एक चालाक लोमड़ी उसके पास आई और बोली ," मुर्गे, महाशय! सुना है, आपकी आवाज बड़ी प्यारी और बुलंद है।" मुर्गे ने गद् गद होकर अपनी आंखें मींची और ऊंची आवाज में चिल्लाया कुकड़ू कू कुकड़ू कु पर तभी लोमड़ी ने फुर्ती से उसे अपने मुंह में दबोच लिया और जंगल की ओर भाग चली ।
गांव वालों की नजर उस पर पड़ी तो वे चिल्लाए," पकड़ो, मारो ! यह तो हमारा मुर्गा दबोचे लिए जा रही है ।" लोमड़ी ने उनकी चिल्लाहट पर ध्यान नहीं दिया और यह देखकर मुर्गा बोला , "लोमडी बहन ,ये गांव वाले चिल्ला रहे हैं कि तुम हमारा मुर्गा दबोचे लिए जा रही हो। आप इन्हें जवाब क्यों नहीं देती कि हम मुर्गा आपका है उनका नहीं ?" लोमड़ी को मुर्गे की बात जम गई। उसने फौरन फौरन मुंह खोला। जैसे ही लोमड़ी का मुंह खुला मुर्गा उसके मुंह से छूटकर भाग गया । वह सरपट भागा और उसने अपने गांव वालों के पास पहुंच गया
एक व्यापारी अपने गधे पर नमक का थैला लादकर शहर जा रहा था । रास्ते में नदी आई । पानी ज्यादा गहरा ना था। कुछ डग भरने के बाद ही गधे का पांव फिसल गया। पर गधा इससे तनिक भी दुखी ना हुआ । पानी में फिसल जाने के कारण भीगकर बहुत सा नमक घुल गया और उसकी पीठ पर का बोझ हल्का हो गया। सहसा गधे के दिमाग में यह घटना बढ़िया तरकीब बन कर बैठ गई । दूसरे दिन जब मालिक उसकी पीठ पर नमक का थैला लादकर शहर ले जा रहा था । वह नदी के पास छुपकर बैठ गया । दो-चार दिन इसी तरह हुआ पर मालिक भी कम नहीं था ।गधे की शरारत ताड़ गया । समझ गया कि बोझ हल्का करने के लिए यह यह गधा ऐसी हरकत करता है ।
फिर क्या था अगली बार शहर से आते समय व्यापारी नमक की बजाय रुई लेता आया । वापसी में नदी के बीच पहुंचने पर गधे ने ऐसे ही अपनी पुरानी आदत दोहराई । वह हैरान रह गया उसका बोझ हल्का होने की बजाय और भारी हो गया , क्योंकि पानी भीगने में रुई भारी हो गई थी । व्यापारी की तरकीब काम कर गई थी
भेड़िया और चरवाह
एक भेड़िया बीमारी की वजह से कुछ कमजोर हो गया । जंगल में शिकार कर अपने लिए भोजन जुटाना अब उसके लिए संभव ना रहा । उसको कहीं से भीड़ की खाल मिल गई । उसने एक चाल चली । भेड़ की खाल ओढ़कर वह पेड़ों के एक झुंड में घुस गया । चरवाहे को इसका पता ना चला । बस , अब क्या था । मौज- ही- मौज । भेड़िया रोज चुपके से एक भेड़ के बच्चे को अलग से ले जाता और मिनटों में गड़प कर जाता । कुछ रोज यह युक्ति चलती रही । एक दिन चरवाहे के घर पर कुछ मेहमान आने वाले थे ।
उसने एक बड़ी सी भीड़ को काटकर उसका सालन बनाने का निश्चय किया । अचानक उसकी दृष्टि भेड़ की खाल ओढ़कर भेड़ बने भेड़िए पर गई ।चरवाहे ने फौरन उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी ।
एक दिन एक राजा आंधी और तूफान में फंस गया उसने एक झोपड़ी में शरण ली । उसने देखा बच्चे जमीन पर बैठे हुए खाना खा रहे हैं । खाने में सिर्फ पतली खिचड़ी ही थी, पर बच्चे काफी स्वस्थ दिख रहे थे। उनके गालों पर हल्की ललाई थी । राजा ने बच्चों की मां से इसका राज जानना चाहा ।
उनकी मां ने कहा , " यह सब उन तीन बातों की वजह से है जो बतौर घुट्टी में इन्हें खाने के साथ देती हूं ।" पहली चीज बच्चे मेहनत करके अपना काम स्वयं करें । दूसरे बच्चे थोड़े में ही संतोष करना सीखें । तीसरी , मैंने उन्हें अंधाधुंध खाने से दूर रखा अर्थात जितनी भूख हो उतना ही खाएं ।
एक छोटे से गांव में रहने वाले मुर्गे को अपनी आवाज पर बड़ा नाज़ था । एक दिन एक चालाक लोमड़ी उसके पास आई और बोली ," मुर्गे, महाशय! सुना है, आपकी आवाज बड़ी प्यारी और बुलंद है।" मुर्गे ने गद् गद होकर अपनी आंखें मींची और ऊंची आवाज में चिल्लाया कुकड़ू कू कुकड़ू कु पर तभी लोमड़ी ने फुर्ती से उसे अपने मुंह में दबोच लिया और जंगल की ओर भाग चली ।
गांव वालों की नजर उस पर पड़ी तो वे चिल्लाए," पकड़ो, मारो ! यह तो हमारा मुर्गा दबोचे लिए जा रही है ।" लोमड़ी ने उनकी चिल्लाहट पर ध्यान नहीं दिया और यह देखकर मुर्गा बोला , "लोमडी बहन ,ये गांव वाले चिल्ला रहे हैं कि तुम हमारा मुर्गा दबोचे लिए जा रही हो। आप इन्हें जवाब क्यों नहीं देती कि हम मुर्गा आपका है उनका नहीं ?" लोमड़ी को मुर्गे की बात जम गई। उसने फौरन फौरन मुंह खोला। जैसे ही लोमड़ी का मुंह खुला मुर्गा उसके मुंह से छूटकर भाग गया । वह सरपट भागा और उसने अपने गांव वालों के पास पहुंच गया
शिक्षा :- इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें किसी दूसरों की बातों में नहीं आना चाहिए।
व्यापारी और गधा
एक व्यापारी अपने गधे पर नमक का थैला लादकर शहर जा रहा था । रास्ते में नदी आई । पानी ज्यादा गहरा ना था। कुछ डग भरने के बाद ही गधे का पांव फिसल गया। पर गधा इससे तनिक भी दुखी ना हुआ । पानी में फिसल जाने के कारण भीगकर बहुत सा नमक घुल गया और उसकी पीठ पर का बोझ हल्का हो गया। सहसा गधे के दिमाग में यह घटना बढ़िया तरकीब बन कर बैठ गई । दूसरे दिन जब मालिक उसकी पीठ पर नमक का थैला लादकर शहर ले जा रहा था । वह नदी के पास छुपकर बैठ गया । दो-चार दिन इसी तरह हुआ पर मालिक भी कम नहीं था ।गधे की शरारत ताड़ गया । समझ गया कि बोझ हल्का करने के लिए यह यह गधा ऐसी हरकत करता है ।
फिर क्या था अगली बार शहर से आते समय व्यापारी नमक की बजाय रुई लेता आया । वापसी में नदी के बीच पहुंचने पर गधे ने ऐसे ही अपनी पुरानी आदत दोहराई । वह हैरान रह गया उसका बोझ हल्का होने की बजाय और भारी हो गया , क्योंकि पानी भीगने में रुई भारी हो गई थी । व्यापारी की तरकीब काम कर गई थी
शिक्षा :- हमें कभी भी अपने काम को बोझ नहीं मानना चाहिए ।
भेड़िया और चरवाह
एक भेड़िया बीमारी की वजह से कुछ कमजोर हो गया । जंगल में शिकार कर अपने लिए भोजन जुटाना अब उसके लिए संभव ना रहा । उसको कहीं से भीड़ की खाल मिल गई । उसने एक चाल चली । भेड़ की खाल ओढ़कर वह पेड़ों के एक झुंड में घुस गया । चरवाहे को इसका पता ना चला । बस , अब क्या था । मौज- ही- मौज । भेड़िया रोज चुपके से एक भेड़ के बच्चे को अलग से ले जाता और मिनटों में गड़प कर जाता । कुछ रोज यह युक्ति चलती रही । एक दिन चरवाहे के घर पर कुछ मेहमान आने वाले थे ।
उसने एक बड़ी सी भीड़ को काटकर उसका सालन बनाने का निश्चय किया । अचानक उसकी दृष्टि भेड़ की खाल ओढ़कर भेड़ बने भेड़िए पर गई ।चरवाहे ने फौरन उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी ।
शिक्षा :- इस कहानी से में शिक्षा मिलती है कि हमें किसी काम करने के लिए किसी और का सहारा नहीं लेना चाहिए।
राजा और झोपड़ी
उनकी मां ने कहा , " यह सब उन तीन बातों की वजह से है जो बतौर घुट्टी में इन्हें खाने के साथ देती हूं ।" पहली चीज बच्चे मेहनत करके अपना काम स्वयं करें । दूसरे बच्चे थोड़े में ही संतोष करना सीखें । तीसरी , मैंने उन्हें अंधाधुंध खाने से दूर रखा अर्थात जितनी भूख हो उतना ही खाएं ।
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